।। श्री।।
।। अथ त्रयोदशोध्याह।।
श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः।
ईस अध्याय के आरंभ में। नवग्रहों के बारे में।
थोड़ी सी चर्चा करेंगे। सुनो श्रोते ध्यान से।।१।।
पहेला रत्न इस माला में। सब से अनोखा सूर्य है ।
बारह नाम सूर्य के। पहेले स्मरेंगे हम।।२।।
मित्र है नाम पहेला। अर्थ है स्नेही जिस का।
नाम है रवी दूसरा। जीस की प्रचंड गर्जना।।३।।
तीसरा नाम सूर्य है। जो बुद्धीमान मार्गदर्शक है।
चौथा नाम भानु है। सतेज और सुंदर जो।।४।।
खग है नाम पांचवा। आकाशभ्रमण करनेवाला।
पुष्ण नाम है छठा। जीस का अर्थ पालनकर्ता है।।५।।
सातवा हिरण्यगर्भ है। जगत्कर्ता रचयिता अर्थ है।
आठवा नाम मरीच है। जो रोगों का विनाश करता है।।६।।
नौवा नाम आदित्य है। अदितीपुत्र जो प्रेरक है।
दसवा नाम सवितृ है। जगानेवाला पावनकर्ता।।७।।
अर्क है ग्यारहवा नाम। जीस का अर्थ दैदीप्यमान।
भास्कर है बारहवा नाम। अर्थ जीस का प्रकाशमान।।८।।
सूर्य एक ही भगवान है। जो रोज़ दिखाई देता है।
जो प्रतिनिधित्व करता है। सत्वगुणी आत्मा का।।९।।
सत्त्व, राजस और तामस। तीन गुण यह ख़ास।
हर एक का अपना स्वभाव विशेष। भगवत् गीता में लिखा है ।।१०।।
विशेष है सत्त्व गुण का। सदाचार, संतुलन और पवित्रता।
सुबोधगम्यता और नियमितता। गुण यह विद्यार्थीयों का।।११।।
राजस गुण का विशेष। चंचलता और हलचल।
गतिशीलता और बदलाव। गुण यह राजा और व्यापारियों का।।१२।।
विशेष तामस गुण का। क्रोध और विध्वंसकता।
गुण यह शूर युद्धवीरों का। ऐसे तीन गुणों का वर्णन।।१३।।
दूसरा ग्रह चन्द्र है। जीसे सोम भी कहा जाता है।
जो गोरा, सुन्दर और सत्त्व गुणी है। जो प्रतिक और संचालक मन का।।१४।।
मंगल है तीसरा ग्रह। रंग लाल, पाया गुण तामस ।
यह है प्रतिक और नियंत्रक। आत्म विश्वास और गर्व का।।१५।।
बुध है ग्रह चौथा। जो शांतता और चतुरता।
है अर्पण करता। हरा इस का रंग है।।१६।।
गुण है राजस इस का । हुनर संवाद करने का।
यह नियंत्रण है करता। यह है व्यापारियों का संरक्षक।।१७।।
पांचवा ग्रह गुरु है। रंग सुवर्ण सा पीला है।
सत्त्व गुणी और ज्ञानी है। ज्ञानार्जन में सहायता करे।।१८।।
छठा ग्रह है शुक्र। जो सुस्पष्ट और पवित्र।
गुण राजस और रंग शुभ्र। देता है समृद्धी, आनंद और संतान ।।१९।।
शनी है ग्रह सातवा। काले वस्त्र पहेना हुआ।
धीमी गती और दे कठीनाईयाॅं। सबक सिखाने के लीये।।२०।।
राहू आठवा ग्रह है। जो एक असुर है।
जब समुद्र मंथन से। अमृत प्राप्त हुआ था।।२१।।
राहू अमृत पिने लगे । पर अमृत गले से।
उतरने से पहेले। विष्णू ने उड़ाया सर उस का।।२२।।
वह सर राहू ग्रह बना। और केतु था धड उस का।
जो है ग्रह नौवां। ऐसी कथा है पुराणों में।।२३।।
राहू ग्रहण के समय में। सूर्य चन्द्र को चले निगलने।
ऐसे ज्योतिष शास्त्र में। माना जाता है।।२४।।
जब सूर्य या चन्द्र। गले से निकले बाहर।
तब ग्रहण काल समाप्त। शास्त्रों के अनुसार होता है।।२५।।
पुराने विज्ञान में। राहू और केतु है।
बिंदु प्रतिच्छेदन के। सूर्य और चन्द्र की कक्षाओं के।।२६।।
ग्रह उद्घृत करते है। महत्त्वपूर्ण तत्त्व अंतरिक्ष के।
जो प्रभाव डाला करते है। सामान्य मनुष्य के जीवन पर।।२७।।
यह नवग्रह सूर्यमाला के। जीवन पर असर है करते।
इन को मिल कर प्रणाम करे। ताकी संकट हरे वे।।२८।।
दुर्बलों को शक्ती दे। ग्रंथपूर्ती में सहायता करे।
वाचकों के कष्ट हरे। बुरे प्रभाव से बचाये।।२९।।
इन नवग्रहों को प्रणाम करू। इन के आगे मस्तक झुकाऊ।
और आगे निवेदन करू। जानकी माँ की कथाये।।३०।।
जैसे उलझे भ्रमर। कमल के फूल के अन्दर।
वैसे माँ के चरित्र। में उलझे मन हमारा।।३१।।
आज ठीक वैसे ही । मन की स्थिती हुई।
फसा रहे वहीं। जानकी माँ की कथा में ।।३२।।
इस जग में लोग इतने । व्याकुल मृत्यू पाने ।
यम ना छुए उन्हें। और उठा लिया माँ का साया।।३३।।
पर यह जीवन। नष्ट हो कर फिर से होगा उत्पन्न।
यह तो जग का नियम। कैसे कोई झुठलाये।।३४।।
जो माँ को पुकारे। सच्ची श्रद्धा भक्ति से।
माँ उस की रक्षा करे। भक्त ही बालक उस के।।३५।।
अब कथा सुनो अगली । रोहिणी खोपकर नामक थी।
एक भक्त माँ की। माँ पर निर्भर रहे वह।।३६।।
माँ की छबी रखे । उस के संग बाते करे।
माँ की प्रतिमा में। माने माँ का अस्तित्व।।३७।।
मराठी में “आई बाई”। का मतलब होता है “माँ जी”।
माँ को सम्बोधे “आई बाई”। ऐसी भक्ती रोहिणी की ।।३८।।
काम करते समय घर के। माँ संग करे बाते।
सुन कर अकेली की बाते। आश्चर्य हो लोगों को।।३९।।
लोग जब उस से पूछते। “किस के संग कर रही हो बाते?”।
तब वह जवाब दे। “आई बाई संग बाते कर रही हूँ”।।४०।।
सब को दिखे तस्वीर माँ की। रोहिणी को दिखे माँ है बैठी ।
कहे “वह सारा कुछ देखती। है तस्वीर मे स्थित होकर” ।।४१।।
पुत्र रोहिणी का। धनंजय सात साल का।
अकेले खेल रह था। रसोई घर में।।४२।।
चूल्हे पर रोहिणी ने। चावल थे चढ़ाए ।
धनंजय खेलते हुए। गया चूल्हे के पास।।४३।।
धनंजय का न था ध्यान। तब पलटा चूल्हे से बर्तन।
गिरे चावल गरमा गरम। पैर जल गया उस का।।४४।।
वह रोने लगा चिल्ला कर। उस की आवाज सून कर।
रोहिणी गयी दौड़ कर। डर गयी जख्म देख कर।।४५।।
उसे ले गयी उठा कर। ठंडे पानी से धोया पैर।
माँ से कहे नाराज़ हो कर। “कहाँ ध्यान था आप का?।।४६।।
मैं नि:शंक मन से आप पर। होती हूँ हमेशा निर्भर।
बच्चा छोड़ा भरौसे पर। आप ने उसे टोका नहीं।।४७।।
अब रक्षा करो उस की। गंभीर न हो हालत उस की।
“बेटे को लेकर बैठी। माँ की तस्वीर के सामने।।४८।।
माँ पर श्रद्धा रख कर। कुंकुम लगाया पैर पर।
कहे “माँ ही मेरी डॉक्टर। कुंकुम उस की दवाई”।।४९।।
भाव जान कर रोहिणी का। माँ करे धनंजय की रक्षा।
कुंकुम औषधी बना। और माँ बनी धन्वंतरी।।५०।।
रोहिणी ने न चाहा वैद्य। फिर भी ठीक हुआ धनंजय।
पाया माँ का कृपा कवच। अपने भक्ती बल से ।।५१।।
एक बार दर्द लगा होने । रोहिणी के गले में।
गयी जाॅंच कराने। डॉक्टर के पास।।५२।।
प्रकृती का परिक्षण कर। गले में गाँठ देख कर।
कहे रोहिणी से डॉक्टर। शल्यचिकित्सा करनी होगी।।५३।।
डॉक्टर उसे उपाय बताये। पर रोहिणी खर्च न कर पाये।
आम इंसान कहाँ से लायें। इतने सारे पैसे।।५४।।
तब घर पहुँच कर। लिए माँ की तस्वीर।
कहे “क्या है आप का विचार। गले में सहु मै दर्द ऐसे।।५५।।
बगैर खाए पिए रहूँ ।और गले में दुःख सहूँ।
इलाज न कर पाऊॅं। पैसों के अभाव से।।५६।।
जपना आप का नाम । है अमृत के समान।
यही करेगा निवारण। मुझ गरीब की बीमारी का”।।५७।।
माँ का नाम लगी जपने । पर डर लगे मन में ।
इस लिए गयी मिलने। फिर से डॉक्टर के पास।।५८।।
डॉक्टर ने जांच की फिर से। और चकरा गये आश्चर्य से।
गाँठ गायब हुई थी गले से। बगैर किसी इलाज के।।५९।।
रोहिणी से कहे डॉक्टर । “यह तो हुआ चमत्कार।
मुझे लगा था कैंसर। है आप को गले का।।६०।।
गले में जो गाँठ दिखी। वह निश्चित कैंसर सी थी।
पर अब गायब हुई। भाग्यवान है आप”।।६१।।
रोहिणी फूली न समाई। पर फिर भी आँख भर आयी।
कैसे संभाले आईबाई। बड़े संकटों से भक्तों को।।६२।।
जल्दी से घर आयी। माँ को खुश खबरी सुनायी।
कहे “दुख से मुक्ती पाई। आइबाई, तेरी कृपा से”।।६३।।
उस के पती चंद्रकांत। थे माँ के परम भक्त।
फोटो स्टूडियो में नौकरी करत। जानकी माँ की कृपा से।।६४।।
काम था फोटोग्राफी का। साइकिल पर घुमना होता।
जगह जगह जाना होता। फोटो खींचने के लिए।।६५।।
साइकिल सड़क के किनारे लगाये। फोटो खिंच कर वापस आये।
तो न दिखाई दे। साइकिल अपनी जगह पर।।६६।।
ढूंढ़ कर परेशान हुए। मन में बहोत डर गये।
पुलिस थाने में गये। फ़रियाद लिखाई चोरी की।।६७।।
घर आये निराशा लिए। हकीक़त पत्नी को बताये।
और पत्नी से कहे। “कैसे कठिनाइयाँ झेलूं मै।।६८।।
बस से जाना होगा। सबेरे जल्दी निकलना होगा।
आते समय देर से लौटूंगा। दूर जाना हो जब काम से।।६९।।
सोचु नयी साइकिल खरीदना । पर पैसे का नहीं ठिकाना ।
बस मेहनत करना। लिखा है भाग्य में”।।७०।।
निराश होकर ऐसे । आई बाई को बताये।
“क्या करू समझ ना आये। साइकिल चोरी हो गयी।।७१।।
अगर आप को चिंता हो। थोड़ी सी भी परवाह हो।
तो मेरी मदद करो। कोई नहीं आप के सिवा”।।७२।।
पुलिस से न कुछ पता चला। पर एक रात दृष्टांत हुआ।
चंद्रकांत को किसी ने जगाया। मध्यरात्र के प्रहर।।७३।।
हिलाकर कोई उन्हें जगाये। “जल्दी से अपनी साइकिल ले आये।”
ऐसे कह कर मार्ग भी बताये। रात में कोई चंद्रकांत को।।७४।।
पहेले स्वप्न लगा उन्हें। इसी लिए गये वापस सोने।
पर फिर से जगाये उन्हें। भक्त वत्सल जानकी माँ।७५।।
तब चंद्रकांत जाग गये। माँ ने बताये हुए।
मार्ग पर गये। और मिली उन्हें साइकिल।।७६।।
सड़क के किनारे कोने में । मिली साइकिल उन्हें।
सारी निशानियाँ पहचाने। खुद की साइकिल का प्रमाण मिला।।७७।।
आस पास नहीं था कोई। साइकिल उन्होंने घर लाई।
वंदन कर कहे “आई बाई। बड़े कष्ट उठाये आप ने”।।७८।।
माँ से मांगी माफी। माँ के प्यार की अनुभूती।
शक्कर से भी कई मीठी। यह अनुभव हुआ उन्हें।।७९।।
सभ्य इमानदार चंद्रकांत पर। मालिक ने भरौसा रख कर।
स्टूडियो बनाया था वातानुकूलित। चंद्रकांत पर सौंपे ज़िम्मेदारी।।८०।।
चंद्रकांत काम से। श्याम को स्टूडियो से।
निकले शीघ्रता से। भूले वातानुकूल बंद करना।।८१।।
घर के पास पहुंचे। तब उन्हें याद आये।
के बंद करना भूल गये। बटन कमरे के अंदर।।८२।।
विचार लगे करने । मूड के स्टूडियो में जाने ।
पर शरीर लगा था थकने। सो प्रार्थना करने लगे।।८३।।
पहुंचे घर जैसे। कहे आई बाई से।
“गलती हुई आज मेरे से। बटन बंद करना भूल गया।।८४।।
वापस मुड़ने की इच्छा थी। पर बहोत थकान हुई।
आप से करू एक बिनती। बटन बंद करे स्टूडियो जा कर” ।।८५।।
तब रोहिणी ने पूछा। “ऐसा क्या कारण हुआ।
आते ही याद आई माँ। प्रार्थना करने लगे?”।।८६।।
चंद्रकांत कहे “मै गया भूल। बंद करना वातानुकूल।
यह नहीं है अनुकूल। इसी लिए चिंता हो रही थी ।।८७।।
पर अब कहा आई बाई से। वे संभालेंगी मुझे।
बटन बंद करेंगी वे। मुझे पूरा विश्वास है”।।८८।।
रोहिणी डर गयी मन ही मन। अगर बंद न हुआ बटन।
तो दुर्भाग्यवश होंगे हम। आग लगेगी स्टूडियो में।।८९।।
स्टूडियो के मालिक ने। खर्चे पैसे वातानुकूल लगाने।
देखे थे बड़े सपने। चंद्रकांत के भरौसे ।।९०।।
अगर हुआ उच्च नीच। पल्ले पड़ेगा सारा दोष।
बदल न पाएंगे दुर्भाग्य। केवल असावधानी के कारण।।९१।।
बार बार पती से कहे । स्टूडियो में जाए।
और बटन बंद कर आये। या फ़ोन कर पूछ ले किसी से।।९२।।
“पर देर तक इतने। कोई न होगा स्टूडियो में।
सो फ़ोन न कर पाऊं मै।” ऐसे बताये चंद्रकांत।।९३।।
चंद्रकांत निश्चिंत थे। पर रोहिणी न शांत रहे।
बार बार यही कहे। फ़ोन करे या हो आये।।९४।।
आखिर चन्द्रकांत मान गये। फ़ोन करने गये।
जो स्टूडियो के पास रहे। उस कर्मचारी को।।९५।।
फ़ोन कर कहे उन से। “कृपया स्टूडियो हो आये।
देख ले क्या हाल है। स्टूडियो के अंदर।।९६।।
क्षमा करना मुझ को। कष्ट होंगे आप को।
पर एक बार देख लो। स्टूडियो का हाल अपनी आँखों से”।।९७।।
वह कर्मचारी कहे तब। “अभी हो आया स्टूडियो की तरफ।
चल रहा था वातानुकूल तब। वह बंद कर आया मैं”।।९८।।
उस के आभार मान कर। निश्चिंत हो पहुंचे घर।
पत्नी से कहे सत्वर। किस्सा माँ की ममता का।।९९।।
कहे “जैसे अपेक्षित था मुझे। हुआ बिलकुल ही वैसे।
एक कर्मचारी को बुद्धि दे। आइबाई स्टूडियो जाने की।।१००।।
जिस को फ़ोन किया था। वह पहेले ही हो आया था।
वातानुकूल बंद कर लिया था। मेरे फ़ोन करने से पहले”।।१०१।।
उन दोनों के बीच। मित्रता नहीं थी विशेष।
पर फिर भी कर्मचारी से उस। करवाई मदद माँ ने ।।१०२।।
खुश हुए मन ही मन। पती पत्नी दोनों जन।
असीम भक्ती के उदाहरण। थे चंद्रकांत और रोहिणी।।१०३।।
अपने सारे सुख दुःख। माँ के संग बाटत।
उस के नाम का कुंकुम लगावत। ऐसी भक्ती उन की।।१०४।।
माँ से इतना प्यार करे। के माँ वश हो जाए।
मदद करने दौड़ कर आये। भक्ती की प्यासी है माँ।।१०५।।
मीराजी की कृष्ण भक्ती। राधाजी की श्रीकृष्ण प्रिती।
हनुमानजी की दास्य भक्ती। ह्रदय में भर लो।।१०६।।
अगर ऐसा कर पाओगे। तो इश्वर को बाँध लोगे।
ज्ञानचक्षु खुल जायेंगे। माँ की कृपा बरसेगी।।१०७।।
जो नियमित जानकी छाया पढ़ेगा। अध्यात्मिक प्रगति पायेगा।
माँ का मार्गदर्शन होगा। अध्यात्म मार्ग में उसे।।१०८।।
।। ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य त्रयोदशोsध्यायः समाप्तः।।
।।शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।
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