।। श्री ।।
।। अथ त्रितियोध्याय: ।।
श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वत्यै नमः।
श्री कुलदेवतायै नम:। श्री गुरुभ्यो नमः।
हनुमानजी जो महान भक्त। रामचरण में जीवन बितावत।
दास्यभाक्ती सिखावत। आम जनता को।।१।।
उन के बचपन की लीलाए। जब उन्हें भूक लगे।
सूर्य उन्हें कोई फल लगे। उड्डान करे सूर्य को खाने।।२।।
स्वयं दिग्गज पराक्रमी। वायुपुत्र मारुती।
परेशान हुए लंकापती।जलाई जब लंका अपने पूछ से।।३।।
एक लम्बी छलांग में। समुद्र पार करे।
लंका जा पहुंचे। सीता मैय्या को मुद्रिका दे।।४।।
युद्ध किया जब रावण से। लक्ष्मणजी घायल हुए।
तब संजीवनी ले आये। द्रोणागिरी पर्वत के साथ।।५।।
हनुमानजी के नाम से। भूत पिशाच कांप उठे।
हनुमानजी के भक्तों के। पास न भटके भूल से भी ।।६।।
जो करे भक्ती। मन से हनुमानजी की।
स्वयं श्रीरामजी। उद्धार करे उन का ।।७।।
जब भक्ती की बात उठी। निवेदन करू नवविधा भक्ती।
पाये आप मन में शांती। प्रकार भक्ती के जानकर।।८।।
पहेला भक्ती प्रकार सुनीये । श्रवण भक्ती कहलाये।
जीस में भक्त करे। श्रवण देव कथाओं का।।९।।
अपने आराध्य दैवत के। चरीत्र और कथाये।
सुन कर मन तृप्त करे। भाविक भक्त जन ।।१०।।
दूसरा भक्ती प्रकार। कीर्तन नाम से प्रसिद्ध।
इस प्रकार की भक्ती में भक्त। गूनगान करे मुख से।।११।।
मन में पुरी श्रद्धा लिए। साम वादन, भजन करे।
और मधुर गायन करे। आराध्य की लीलाओं का।।१२।।
तीसरी स्मरण भक्ती है । जीस में भक्त स्मरण करे।
सतत मन में नाम स्मरे। अपने आराध्य दैवत का।।१३।।
उस की चरीत का ध्यान रखे। उस अनुसार जीवन काटे।
रास्ते पर चले निती के। अपने आराध्य के स्मरण में ।।१४।।
चौथा पाद सेवन। भक्त जाए शरण।
आराध्य दैवत को माने महत्वपूर्ण। उस से बड़ा कोई नहीं।।१५।।
जो कुछ भी हो रहा है। उस की वह इच्छा है।
सृष्टी चले इच्छा से। उस परमात्मा की।।१६।।
उस के चरणों में। सृष्टी और ब्रह्माण्ड है।
उस चरणों का पूजन करे। भक्त शरण जाकर।।१७।।
अब सुनो पांचवी। जो है अर्चना भक्ती।
उस में भक्त छोड़े आसक्ती। दान करे पूजन के लिए।।१८।।
दक्षीणा दान करे। ताके कोई पूजन करे।
पुरे धार्मिक विधी से। आराध्य दैवत का।।१९।।
स्वयं पूजा न कर पाये। तो किसी और से कराये।
शास्त्रीय क्रिया पद्धती से। पूजा की सामग्री देकर।।२०।।
छठा प्रकार भक्ती का। वंदना भक्ती कहलाता।
इस में भक्त को यह लगता। आराध्य जैसा कोई नहीं।।२१।।
उस की न्यारी लीलाए। वह निराला है सब से ।
उस के सामने सब तुच्छ है। सुख, संपती, ब्रह्माण्ड भी।।२२।।
ऐसी भावना लिये। भक्त वंदन करे जाये।
नतमस्तक हो जाये। सामने आराध्य के।।२३।।
सातवी दास्यभक्ती है। भक्त स्वयं दास बने।
और मालिक माने।अपने आराध्य दैवत को।।२४।।
इस भक्ती प्रकार का। आदर्श उदाहरण एक हुआ।
हनुमानजी ने सिखलाया। रामभक्ती से यह सिद्धांत।।२५।।
अब सुनो आठवी। जो है साख्य भक्ती।
प्रभु से करे मैत्री। और उस पे सौपे चिंता सारी।।२६।।
इस का आचरण सुदामा ने। उस पार्थ अर्जुन ने।
और गोप गोपीयों ने। श्रीकृष्ण को मित्र मान कीया ।।२७।।
आत्म निवेदन अंत में। कठीण भक्ती प्रकार है।
परे पहुंचे भावनाओं के। भक्त भाव विभोर होकर।।२८।।
भक्त “सोऽहं” भाव से। प्रभू में समाना चाहे।
सारी दूरीयां मिटाए। भक्त अराध्य के बीच से ।।२९।।
अपने आप को विलीन करे। इश्वर में समा जाए।
अपने आप को अलग ना पाये। भक्त अपने अराध्य से।।३०।।
खैर, हनुमान स्मरण के साथ। अब करू शुरुवात।
जीन के पराक्रम की बात। तीनो लोको में चले।।३१।।
पिछले अध्याय में। पढ़ा ही है आप ने ।
विविध चमत्कारों के बारे में । जानकी माँ के ।।३२।।
जिस के मार्ग में थे । भर भर के कांटे ।
फिर भी भक्तों को बांटे । फुल सुख समृद्धी के।।३३।।
करे सेवा गौ भैसों की । घर के तबेले में जो थी।
वात्सल्य दे उन्हें माँ जानकी। वे दे दुग्ध माँ को ।।३४।।
जब आते थे चर के । जानवर वापस घर पे।
जानकी माँ के दर्शन पा के। धन्य होती गौ भैसे ।।३५।।
दर्शन ना हो माँ के। तब तक दूध ना दे ।
वात्सल्य भावना ऐसी जागे। जानवरों के मन में भी ।।३६।।
दादा भी देखभाल करते। पर क्रोध न संभल पाते।
और लाठी से मारते । घर के जानवरों को ।।३७।।
जानकी माँ बिनती करे। कहे जानवरों को ना मारे।
पर दादा ना हारे। जानकी माँ के शब्दों से।।३८।।
क्रोध अग्नी है ऐसी। जो दहन है करती।
मानव की बुद्धी और नीती। अपवाद नहीं थे दादा भी।।३९।।
पर ना चिल्लाये जानवर। ऐसा हो चमत्कार।
जानवरों की मार। माँ ले अपने पीठ पर ।।४०।।
पीठ पर जानकी माँ के । जब दादा निशान देखे।
मारी हुई लाठी के। तब दुःख से चिंतीत हो ।।४१।।
जो मन से आये शरण। उस का उद्धारे जीवन।
सब की चिंता करे हरण। वह जानकी जगाद्मता।।४२।।
बच्चा हो जीस घर में। या भूखे परिवार में।
दूध बाटे गरीबों में । ताके भूखा न रहे कोई।।४३।।
पास के गावों से । प्लेग फैला ऐसे।
लोग मरे प्लेग से। बढ़ने लगी मृत्युसंख्या ।।४४।।
गणदेवी गाव के जन। जानकी माँ के धरे चरण।
कहे आये हम शरण। गाँव बचाओ इस प्लेग से ।।४५।।
कहे जानकी माँ सब से। “ना डरे प्लेग से।
मै रोकूंगी गाव के। सीमा पर इस प्लेग को”।।४६।।
हाँथ में आटा लेकर। फेकती चले सीमा पर।
ताके प्लेग ना घुसे गाव के अन्दर। बाँध रखे गाव की सीमा ।।४७।।
सावधान हो गाव में फीरे। उठाये जो चूहे मरे।
स्वयं रोगियों की सेवा करे। डर ना लगे उन्हें कोई।।४८।।
कबूतर की विष्ठा ले । रोगियों को लेपन करे।
जानकी माँ के छूने से। विष्ठा बने औषधी।।४९।।
कथा बिलकुल ऐसी ही। श्री साईं चरित्र में थी।
रोगों को रोके साईं। आटे से गाव की सीमा पर।।५०।।
जीव्हा पर जानकीमाँ के । स्वयं सरस्वती विराजे।
कभी बच्चों को सुनाये। गीत और किस्से संतों के।।५१।।
अगरबत्ती लेकर हाथ में । कहे सब से देखने ।
ध्यान लगाकर धुए में। जो देखे आश्चर्य करे।।५२।।
दर्शन हो शिर्डी के। लोगों को द्वारकामाई दीखे।
और बाबा की धुनी दीखे। साक्षात् साईबाबा दे दर्शन।।५३।।
कभी आईने में दिखाए। श्रीकृष्ण की लीलाएँ।
जो गोपियां रास रचाए। श्रीकृष्ण के संग।।५४।।
जब माँ सुनाये किस्से। बच्चों को देवताओं के ।
तब हवा में चित्रपट देखे। बच्चे उस कथा का ।।५५।।
लेकर अनुभव जानकी माँ के। लोग नमन करते।
दादा न ये सारा मानते। डांटते बहोत माँ को।।५६।।
कहे आज जो वंदन करे। कल उठ के निंदन करे।
पर जो निंदा से डरे। बताओ वह संत कैसे।।५७।।
जनहीत के लिए। अपना आयुष्य समर्पित करे।
बिना लाभ की अपेक्षा करे। यह मुख्य लक्षण है संतो का।।५८।।
जैसे चीटी मीठे की ओर। या फूल की ओर बढे भ्रमर।
वैसे ही भक्त संतों की ओर। प्रत्यक्ष आकर्षीत होते है।।५९।।
उस गणदेवी गाव में। बड़े से मैदान में।
वेंगाणीयाँ नदी के पास में। सुन्दर सा शीव मंदीर था।।६०।।
नवरात्री के लगे मेले। उत्सव मैदान में चले।
सारे लोग गरबा खेले। खुशियाँ बांटे नाचे सब।।६१।।
सारी स्त्रीयां जाए खेलने। पर दादा एक ना सुने।
घर के बंद कमरे में। माँ को रखे कैदी सा ।।६२।।
ताला लगाकर बंद करे। ताके माँ बाहर न जाए।
स्वयं कमरे के बहार सोये। ताके नज़र रहे माँ पर।।६३।।
जानकी माँ ना खेलने आये। गरबे का मज़ा न आये।
दुःख से व्याकुल हो सारी महिलाए। पर कुछ ना कर पाये वे ।।६४।।
कोई व्यक्ती गाव से आये। दादा को कहानी सुनाये।
खड़े स्वर में जानकी माँ गाये। रंग लाया गरबा आज ।।६५।।
दादा कहे गाववाले से। “जानकी ना निकली घर से।
तो फिर पहुंचे कैसे। गरबा गाने मंदिर में”।।६६।।
पर मित्र कहे उन से। “स्वयं अपनी आँखों से।
मंदीर चल कर देखे। फिर करे विश्वास”।।६७।।
फिर से एक बार दादा ने। जानकी माँ के कमरे में।
झाँका तसल्ली करने। देखा सोयी है माँ ।।६८।।
फिर गए मंदीर में। देखे जानकी माँ गरबे में।
गाये खड़े स्वर में। होश उड़े दादा के।।६९।।
घर पर और गरबे में। दोनों जगह माँ दीखे।
लीला समझे तब जाके। जानकी साक्षात् देवी स्वरुप।।७०।।
कथा एक ऐसीही । गुरुचरित्र में है लिखी।
महाराज नरसिंह सरस्वती। एक समय दिखे अनेक जगह।।७१।।
वैसे ही माँ जानकी। देवी का स्वरुप थी।
स्वामिनी अनेक देहों की। उन को क्या था असंभव।।७२।।
कुछ भक्त जानकी माँ के। उन्हें बायजी थे बुलाते।
असीम श्रद्धा भक्ती से। प्रेम से बंधे बायजी।।७३।।
एक सुभक्त थे। ताम्हाणे नाम के।
नवसारी गाव के। उन की कथा सुनो।।७४।।
छोटे बच्चे को उन के । बीमारी हो, शरीर तपे ।
व्रण हुए माता के । तड़पने लगा बच्चा वह ।।७५।।
उस की माँ जब छाले देखे। डॉक्टर को बुलाये समय शाम के।
घर आ कर डॉक्टर बतलाते। “स्थिती गंभीर है बच्चे की।।७६।।
कुछ ना हो सके आज । कल आकर करू इलाज”।
डॉक्टर के जाने के बाद। माँ याद करे बायजी को।।७७।।
केले के पत्ते पर। बच्चे को रख कर।
माँ कहे, “बायजी आकर । बच्चे का रक्षण करो ।।७८।।
आये है तेरी शरण। करो इस रोग से रक्षण।
मेरे बच्चे को अर्पण। करो अपना कृपाशिर्वाद।।७९।।
मृत्यु के चंगुल से। बचाने की क्षमता है।
केवल बायजी आप में। भक्तों को संभालो माँ”।।८०।।
जैसे वह मन से पुकारे । कोई दरवाज़ा ठाकठकाए।
द्वार खोले आश्चर्य करे। जानकी माँ खडी हो द्वार पर।।८१।।
कहे, “आई थी नवसारी में। सोचा आऊ तुम से मिलने।
घर ढूंढा रात में” । बच्चे का हाल देखा।।८२।।
बालक पर हाथ फेरे। कहे सब से “ना कोई डरे।
देवी माँ का स्मरण करे”। प्रसाद निकाले हाथ से।।८३।।
रात भर करे आरती। देवताओं की करे स्तुती।
बालक की सुधरे प्रकृती। धीरे धीरे सुबह हुई।।८४।।
माँ सब से आज्ञा ले । गणदेवी जाने के लिए।
ताके छे बजे की बस मिले । कह कर लौटी बायजी।।८५।।
आये डॉक्टर सबेरे। कहे, “सब से ना डरे।
बच्चे की प्रकृती सुधरे। कल से अधीक ठीक है”।।८६।।
बच्चे की माँ कहे डॉक्टर से। “बायजी की कृपा से।
बालक बचा मृत्यु से। कल रात पधारी थी बायजी।।८७।।
आज सबेरे की बस लेकर। चली गयी कृपा कर”।
आश्चर्य में डूबे डॉक्टर। पर किर्ती सूनी थी माँ की।।८८।।
कोई बस नहीं थी रात में। नवसारी तक गणदेवी से ।
फिर अकेली आये कैसे। यह अनपढ़ नारी यहाँ।।८९।।
ऐसे आश्चर्य में डॉक्टर । अपने गाडी में बैठ कर ।
पहुंचे जानकी माँ के घर। सच्चाई जानने के लिए।।९०।।
बायजी स्वयं थी बीमार। पेट दर्द से थी बेहाल।
नहीं गयी घर से बहार। फिर कौन गया ताम्हाणे के घर।।९१।।
गया स्वरुप देवी का। रूप धर जानकी का ।
दुख देख कर भक्तों का। देवी कैसे चुप रहे ।।९२।।
जानकी माँ के अनेक भक्त । दर्शन करने आवत।
बिलिमोर्या नवसारी से गणदेवी तक। आशीर्वाद पाने माँ का।।९३।।
कुछ दीनों के लिए । जानकी माँ के घर आये।
दर्शन की आस लिए। त्रिम्बक राजे नामक भक्त।।९४।।
चंद्रकांत के संग गए। नदी पर नहाने के लिए।
किसी को बगैर बताये। और हुआ हादसा।।९५।।
जानकी माँ पूजाघर में थी। बेटियों से बाते करती।
अचानक ध्यान में बैठी। और हुई पुरी गीली।।९६।।
इतना पसीना देखे । क्या हुआ बेटियाँ पूछे।
डर के मारे जानकी से। सेवा करने लगी सारी।।९७।।
तब जानकी माँ ने कहा। “त्रिम्बक जब था डूब रहा।
तब जाकर बचाया। इसी लिए गीली हुई”।।९८।।
जब त्रिम्बक लगे डूबने। तब कोई हाथ दे उन्हें।
उस भयंकर नदी में। और लगाए किनारे।।९९।।
जब देखे गाववाले । पानी पेट से निकाले।
और फिर घर ले चले । तब जानी सारी सच्चाई।।१००।।
उन की पत्नी दुसरे दीन। ले आयी पूजा का सामान।
जानकी माँ के धरे चरण। सुहाग रक्षा था माँ ने।।१०१।।
ऐसे ही सावन के दीन आये। बिजली चमके मेघ गरजाए।
बारिश का मज़ा लिए। बच्चे भीग रहे थे।।१०२।।
बादल में बिजली चमके । सारे बच्चे डर के।
अपनी माँ से लिपटे । बगैर कुछ कहे।।१०३।।
मालू जानकी माँ से कहे । “नानी हम देख ना पाए।
झटके में बिजली गायब हो जाए। चाह कर भी न देख सके”।।१०४।।
तो हस कर कहे माँ जानकी। “तू लाडली मेरी नाती।
लो दीखाऊ जो देख ना पाती। आम तौर पर बच्ची तू”।।१०५।।
जैसे चमके बिजली ऊपर। माँ रोके हाथ दीखा कर।
जानकी माँ के आज्ञा पर। स्तब्ध हो जाए बिजली भी।।१०६।।
हाथ निचे करे जैसे । बिजली गायब हो वैसे।
निसर्ग आज्ञा माने ऐसे। देवी रूपी माँ की ।।१०७।।
जो अनन्य भाव से। शरण जाए माॅं के।
असंभव काम उस के। होंगे सारे संभव ।।१०८।।
।। ईती श्री जानकी छाया ग्रंथस्य त्रुतीयोsध्यायः समाप्तः।।
।। शुभं भवतु।।
।।श्रीरस्तु।।
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